जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा
हिन्दी लोकप्रिय साहित्य (जिसमें जासूसी भी समाहित है) में श्री ओम प्रकाश शर्मा अपने उत्कृष्ट धरातल से जुड़े वास्तविक एवं यथार्थवादी किंतु स्वप्नदर्शी एवं प्रयोगधर्मी लेखक थे। भारत और भारतीयता के ध्वजवाहक और गरीब तथा साधनहीन लोगों और वर्गें के पक्षधर होने के साथ – साथ वे हिन्दी साहित्य और शास्त्रीय एवं सुगम संगीत के अच्छे ज्ञाता और प्रवर्तक थे। उन्होने उस समय हिन्दी में यथार्थपरक जासूसी उपन्यास लिखे जबकि या तो अंग्रेजी उपन्यासों की नकल अथवा अनुवाद लिखे जा रहे थे। ऐसे समय में उन्होने बिलकुल हाड़-मास के बने आम आदमी को ही अपना नायक बनाया और उसके माध्यम से भारतीय आदर्शों को प्रस्तुत किया और प्रोत्साहन दिया। उन्होने मनुष्य की कमजोरियों को भी सहजता से स्वीकारते हुए अपने अनेक नायकों में विभिन्न प्रकार की मानवीय कमजोरियों को आरोपित कर उसे भी उच्चतर परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया।
उनके नायकों में सर्वोंपरि हैं राजेश। जिसके लिए शर्मा जी आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करते रहें हैं। यह एक ऐसा व्यक्ति है जो आदर्शों से परिचालित है, ईमानदार है और मानवीय दृष्टिकोण का पोषक है। यह एक ऐसा नायक है जो अपराधियों को मारने, पकड़ने से अधिक उन्हें सुधारने और समाज में उपयुक्त स्थान दिलाने का प्रयास करता है। मैंने अपने द्वारा पढ़े गए किसी भी हिन्दी या अंग्रेजी के उपन्यासों में ऐसा कोई नायक नहीं देखा।
इतना होने पर भी राजेश कोई सुपरमैन नहीं है और न ही सर्वोच्च है। शर्मा जी के अन्य नायक यथा गोपाली, विलियम कृष्ण इत्यादि राजेश से बड़े हैं और अपने क्षेत्र के सर्वोत्तम हैं। किंतु ये लोग राजेश का अत्यंत सम्मान करते हैं। राजेश के अधीनस्थ और मित्र तो उसका सम्मान करते ही हैं। वे उसे ”बड़े भाई” पुकारते हैं। इस प्रकार शर्मा जी ने आदर्शों को अत्यंत आदरणीय और स्पृहणीय दर्शाते हुए उसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
शर्मा जी ने उस समय हिन्दी में एंटी हीरो की सृष्टि की जबकि अन्य कोई ऐसा करने की सोच भी नहीं पाए थे। उनका पात्र जगत एक एंटी हीरो है जो ठग है, लम्पट है किंतु अहिंसावादी है।
उनका पात्र चक्रम एक बुजुर्ग प्राइवेट जासूस है और भारत में बुजुर्गों में आमतौर पर पाई जाने वाली सनकों को भली भाति व्यक्त करता है।
उनका पात्र विलियम कृष्ण एक ऐसा वैज्ञानिक है जो सदैव मानवता की रक्षा के लिए कार्य करता रहता है।
अगर हम उनके मध्य काल के भारत के पात्रों की चर्चा करें तो इससे भी उनके उस काल की सोच की गहरी पकड़ व्यक्त होती है। ”लखनवी जासूस” के नायक चतुरी पाण्डे का भारत के नवोन्मेष की ओर पूर्ण समर्थन होने पर भी वे अवध के नवाब के प्रति अपने दायित्व को जिस प्रकार निभाते हैं इसका समन्वय श्री शर्मा जी के ही बूते की बात है। इस दृष्टि से ”खून की दस बूंदें” के नायक गुलहसन की विवशता भी शर्मा जी की कुशल लेखनी से ही संभव था।
यों तो शर्मा जी को पूरा चिंतन और लेखन ही न सिर्फ मौलिक है बल्कि अभिनव और प्रेरक है। किंतु अगर हम कुछ ऐसी विशेषताओं का लेखा-जोखा करें जो कि शर्मा जी ने या तो सर्वप्रथम प्रस्तुत की अथवा केवल उनके द्वारा ही प्रस्तुत की गई तो हम पाएंगे कि
1- मध्य काल (मुस्लिम शासन काल) को पृष्ठ भूमि बनाकर केवल उन्होने ही जासूसी और गैरजासूसी उपन्यासों की रचना की जिसमें ”लखनवी जासूस”, ”खून की दस बूंदें”, ”नूरबाई”, ”नीली घोड़ी का सवार”, ”पापी धर्मात्मा”, ”दूसरा ताजमहल” उल्लेखनीय है।
2- यह भी सुनने में आया है कि उन्होने रामायण एवं महाभारत कालीन पात्रों को लेकर जासूसी उपन्यास लिखे।
3- भारत की समस्याओं पर जासूसी उपन्यास लिखे जिसमें जमाखोरी की समस्या पर ”कफन चोर”, बांगलादेश की समस्या पर ”इधर रहमान उधर बेईमान”, भारत से प्रतिभा पलायन की समस्या पर ”अपना -अपना प्यार”, भारत की मुस्लिम समस्याओं पर अनेक उपन्यास जिसमें ”एक रात का मेहमान” शामिल है, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल पर ”इमरजैंसी” इत्यादि उल्लेखनीय है।
4- भारत के स्वतंत्र होने के उपरांत विभिन्न रियासतों, रजवाड़ों की पृष्ठ भूमि पर उनकी समस्याओं पर आधारित अनेक उपन्यास जिनमें ”नीली ज्योति का रहस्य”, ”पी कहां” इत्यादि अनेक उपन्यास। वस्तुतः इस विशेष विषय पर उन्होने एक नायक गोपाली की सृष्टि की।
5- विभिन्न सामाजिक कुरीतियों यथा दहेज, जाति पाति, छुआ छूत, बुजुर्गों की समस्या इत्यादि विषयों पर तथा भारत में पांव पसारती विभिन्न नवीन कुरीतियों पर सार्थक उपन्यास लिखे जिनमें ”एक जिद्दी लड़की”, ”नया संसार”, ”चित्रकार की प्रेमिका”, ”एक रात” इत्यादि उल्लेखनीय है।
6- अपराध के घटित होने के उपरांत अपराधी के अन्वेक्षण करने पर तो सभी लिखते हैं शर्मा जी ने भी लिखा किंतु अपराध घटित होने से पूर्व संभावित अपराध का पता लगाकर उसे रोकने के विषय पर हिन्दी में और सम्भवतः अंग्रेजी में भी कोई उपन्यास नहीं लिखा गया है। श्री शर्मा जी ने न सिर्फ ऐसे अनेक उपन्यास लिखे बल्कि उनके काल्पनिक केंद्रीय खुफिया विभाग में एक अनुभाग ई – 3 (ईमानदार – 3) की कल्पना भी की।
7- श्री शर्मा जी हिन्दी के जासूसी लेखन के वैतालिक और पितामह श्री बाबू देवकी नंदन खत्री जी से प्रभावित रहे हैं और श्रृद्धांजलि स्वरूप उन्होने खत्री जी के सर्वाधिक लोकप्रिय पात्र भूतनाथ को केंद्रीय पात्र बनाकर तीन – चार उपन्यासों की रचना की। यही नहीं उन्होने अपने काल्पनिक केंद्रीय खुफिया विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के आवास को भूतनाथ कालोनी का नाम दिया।
8- यह शर्मा जी की ही विलक्षण सूझ है कि उन्होने भूतनाथ श्रृंखला के उपन्यासों में तथा अन्यत्र भी मूंशी सदासुख लाल के नाटक ”इंद्र सभा” के पात्रों और ”किस्सा तोता मैना” के पात्रों को भी बड़े रोचक ढंग से सम्मिलित किया है।
उपर्युक्त 8 बिंदुओं में सम्मिलित नवीन सोच और अभिनव प्रस्तुति ही इस महान लेखक की लेखनी का लोहा मानने के लिए पर्याप्त है।
साढे चार सौ से अधिक जासूसी, गैर जासूसी (जिसमें तथाकथित सामाजिक, ऐतिहासिकउपन्यास सम्मिलित हैं,) के लेखक की भाषा भी अपने आप में अनुठी है। उनकी भाषा का प्रवाह मंत्रमुग्ध कर लेने वाला है। वे अपने प्रिय हिन्दी लेखक श्री अमृत लाल नागर की भांति लच्छेदार भाषा का प्रयोग करते हैं। भाषा में सामान्य बोल चाल के शब्दों को अत्यंत प्रभावी प्रवाह देखने को मिलता है।